ISRO: अंतरिक्ष में सुनहरी कामयाबी की सौवीं उड़ान
इसरो के अनुसार एनएवीआईसी भारत की स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट प्रणाली है जिसे भारत तथा भारतीय भूभाग से लगभग 1,500 किलोमीटर आगे तक फैले क्षेत्र में उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति, वेग तथा समय सेवा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
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Sanjay Purohit
Created AT: 30 जनवरी 2025
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भारत ने नए साल का शानदार आगाज करते हुए अंतरिक्ष में दो बड़े कीर्तिमान कायम कर दिए हैं। सबसे पहले इसरो ने 16 जनवरी को अंतरिक्ष में पहली बार दो यानों को सफलतापूर्वक जोड़ कर एक नया इतिहास रचा और इसके कुछ ही दिन बाद 29 जनवरी को उसने अपने ऐतिहासिक 100वें रॉकेट प्रक्षेपण के जरिए अपने दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रह को कक्षा में स्थापित कर दिया। भारत को लंबे समय से अंतरिक्ष में अपने यानों की डॉकिंग का इंतजार था। सटीक गणनाओं और अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से हासिल की गई यह उपलब्धि अंतरग्रहीय मिशनों और उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती क्षमताओं को प्रदर्शित करती है।

इसरो ने सीमित संसाधनों के साथ काम करने के बावजूद एक अत्यधिक परिष्कृत कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया है। डॉकिंग के लिए दो उपग्रहों के बीच सही मिलान की आवश्यकता होती है, और इसमें अविश्वसनीय रूप से जटिल गणनाएं शामिल होती हैं। यह ऐसा काम नहीं है जो हर देश कर सकता है, लेकिन भारत ने एक बार फिर पूरी दुनिया के समक्ष अपनी योग्यता साबित कर दी है।

भविष्य में भारत की अंतरिक्ष में बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएं हैं। भारत अंतरिक्ष में अपना स्थायी स्टेशन स्थापित करना चाहता है। अन्य बड़े लक्ष्यों में चंद्रमा से नमूने लाना और वहां मानव भेजना शामिल है। डॉकिंग की तकनीक इन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। पूरे देश और इसरो के वैज्ञानिकों के लिए यह बड़े गौरव की बात है कि भारत अंतरिक्ष में यान को डॉक करने वाला चौथा देश बन गया है। स्पैडेक्स मिशन इसरो की एक महत्वपूर्ण परियोजना है।

डॉकिंग के बाद भारत की दूसरी बड़ी उपलब्धि इसरो की 100वीं रॉकेट उड़ान के रूप में सामने आई जब उसके शक्तिशाली जीएसएलवी-एफ15 रॉकेट ने दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया। इसरो ने श्रीहरिकोटा से अपने प्रक्षेपण में जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच वीकल (जीएसएलवी) का इस्तेमाल किया। एनवीएस-02 नेविगेशन उपग्रह को ले जाने वाले जीएसएलवी-एफ15 ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी और करीब 19 मिनट बाद रॉकेट ने एनवीएस-02 को 322.93 किमी की जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर कक्षा में स्थापित कर दिया। इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने कहा कि इसरो ने छह पीढ़ी के रॉकेट प्रक्षेपित किए हैं। इन प्रक्षेपणों के माध्यम से 433 विदेशी उपग्रहों के 23 टन सहित कुल 120 टन वजन वाले 548 उपग्रह स्थापित किए गए हैं। एनवीएस-02, एनवीएस (नेविगेशनल सैटेलाइट) शृंखला का दूसरा उपग्रह है। यह भारत के नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (एनएवीआईसी) का हिस्सा है। इसरो के अनुसार एनएवीआईसी भारत की स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट प्रणाली है जिसे भारत तथा भारतीय भूभाग से लगभग 1,500 किलोमीटर आगे तक फैले क्षेत्र में उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति ,वेग तथा समय (टाइमिंग) सेवा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र है।


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